रग-मण्डप में उपस्थित सभी राजा महाराज द्रुपद का उपहास करने लगे। एक राजवंशी ने कह दिया-" ऐसा प्रतीत होता है कि अब महाराज द्रुपद सामर्थ्यवान व्यक्ति से अपनी पुत्री का विवाह करने के चक्कर में निषादो को भी स्वयंवर में प्रतिभाग करने के लिए आमंत्रित करेंगे। उन्होंने अनेक राजाओं के मध्य महाराज द्रुपद को हास्य का पात्र बना दिया।
इतने में एक ब्राह्मणयुवान भीड़ में से बाहर आया। उसने धनुष पर प्रत्यचा बाँधने और लक्ष्य साधने कीइच्छा व्यक्त की। महाराज द्रुपद ने उस व्यक्ति से उसका परिचय पूछा। ब्राह्मण युवानने उत्तर देते हुए कहा-" महत्व इस बात का नहीं की रत्न किसी खदान से प्राप्तसे हुआ है या सीप के मुख से, महत्ता तो उसके सौन्दर्य में है। उसी प्रकार इस वक्त महत्वमेरे सामर्थ्य का है, मेरे परिचय का नहीं।" दुर्योधन उठ खड़ा हुआ। उसने कहा-" भेस तो ब्राह्मण का है। एक ब्राह्मण को अपना परिचय देने में इतना भय क्यों हो रहा है?" ब्राह्मण युवान ने उत्तर देते हुए कहा "नारियल को देखने वाला उसे कठोर कहता है परंतु जानने वाले के लिए वह नर्म है।" " मैं महाराज द्रुपद से इसधनुष पर प्रत्यचा बाँधने और लक्ष्य भेद करने के लिए आज्ञा चाहता हूँ "-महाराज द्रुपद से उसने आज्ञा माँगते हुए कहा। महाराज द्रुपद ने आज्ञा दे दिया।इसके पश्चात वह धनुष की ओर बढ़ा| उसने धनुष को अपने हथेली से पकड़ा। धनुष उठाने से पूर्व कुछ क्षण के लिए उसकी दिव्यता, उसके भार और संकल्प कोमहसूस किया। धनुष के मध्य भाग पर धीमे-धीमे बल लगाते हुए उसे उठा लिया। सम्पूर्णसभा अचंभित रह गई। महाराज द्रुपद हैरान थे कि अर्जुन और कर्ण को छोड़कर यह व्यक्तिकौन है जिसमें उनके समान सामर्थ्य है। दुर्योधन अवाक देखता रह गया। परंतु ब्राह्मणवेष में खडे अर्जुन को वह व्यक्ति कुछ परिचित प्रतीत हो रहा था। उस ब्राह्मण युवकने धनुष पर प्रत्यचा बाधा। धनुष को दाहिने हाथ से उठाते हुए उस पर तीर का संधान किया।मुख नीचे जलाशय की ओर दृष्टि मछली के प्रतिबिंब पर। बाए हाथ से प्रत्यचा खींचतेहुए तीर छोड़ा। तीर सीधे जाकर मछली की आँख पर लगा। यन्त्र में मछली का घूमना बन्दहुआ और महाराज द्रुपद प्रतीक्षा का भी अन्त हुआ परंतु द्रौपदी अभी भी विचलित थी।सभी क्षत्रियों को मुख शर्म से झुक गया। इतने सारे क्षत्रियों के उपस्थित होने परभी एक ब्राह्मण द्वारा उस लक्ष्य को भेदा जाना, उनके लज्जा का कारण था। रग-मण्डप में मंगल-गान आरंभ हुए। नर्तकों द्वारा नृत्य आरंभ हो गया। अभी भी द्रौपदी की इच्छा उस व्यक्ति सेविवाह करने की नहीं थी, परंतु उसने उस अपमान के भय से अपनी इच्छा व्यक्त नहीं की जो की उसके पिता को प्राप्त होता यदि वह मना कर देती। मना भी किस कारण से करती, ब्राह्मणों को स्वयंवर मेंप्रतिभाग करने की अनुमति भी तो उसके पिता ने ही दी थी। वह युवान तो सूत भी नहीं था, जिसके कारण वह मना करसके।
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Draupadi Swayamvar
Historical FictionEveryone knows about the very famous story about Draupadi, the princess of Panchal, born from fire. The story about her 'swayamvar' is also very well known, where Arjun disguised as a Brahmin Kumar, aims at the revolving fish's eye and marries Draup...