1. देवी पार्वती की जिज्ञासा

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द्रौपदी के जन्म के पश्चात वासुदेव श्रीकृष्ण पाञ्चाल पधारे और उन्होंने महाराज द्रुपद को अपनी पुत्री, राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर का आयोजन करने का परामर्श दिया। द्रुपद ने कहा- " वासुदेव, मैं अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे स्वयंवर की योजना करूँगा जिसे सिर्फ विश्व का सर्वश्रेष्ठ योद्धा ही जीत सकेगा। और मेरी दृष्टि में अर्जुन ही एकमात्र ऐसा योद्धा है। मैं चाहता हूँ कि विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर मेरी पुत्री का पति बने। परन्तु ऐसी सूचना है कि वार्णावर्त की अग्नि ने पाँचों भाई और उनकी माता को भस्म कर दिया, तो फ़िर यह योजना कैसे संभव होगी।" वासुदेव ने हल्की मुस्कान के साथ उत्तर देते हुए कहा कि यदि अर्जुन का प्रेम द्रौपदी कि नियति में होगा तो अर्जुन अवश्य आएगा।" द्रौपदी के मन में अर्जुन के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होने लगी। जितना वो अर्जुन के बारे में जानने लगती उसका अपने नियति पर विश्वास और दृढ़ हो जाता। अब द्रौपदी ने अर्जुन को मन से अपना पति मान लिया था।

पाञ्चाल में पाञ्चाली के स्वयंवर की तैयारियाँ आरंभ हो गई। आर्यावर्त के सभी राजाओं और राजकुमारों को निमंत्रण भेजे जा चुके है। चहुदिशि सिर्फ हर्ष और उल्लास का माहौल है। पाञ्चाल में कुबेर का भण्डार खुला है। स्वयं अन्नपूर्णा पाञ्चाल को भोजन करवा रही है। स्वयं वासुदेव का कहना था कि इस स्वयंवर से आर्यावर्त में धर्म की स्थापना होगी। इस स्वयंवर का साक्षी बनने के लिए जितनी उत्सुकता पाञ्चाल वासियों में थी उतनी ही उत्सुकता कैलाश में भी दिखाई दे रही थी। देवी पार्वती महादेव से उनके आराध्य श्रीकृष्ण की आगे की योजना के बारे में पूछती है। महादेव कहते है- "आगे की योजना क्या है, द्रौपदी का अर्जुन के साथ विवाह और आर्यावर्त में धर्म की स्थापना।" इस पर देवी पार्वती प्रश्न करती है-"महादेव, पाण्डवो ने तो अज्ञात रहने की योजना बनाई है। तो क्या फिर वे स्वयंवर में पधारेंगे?" महादेव कहते है-" गौरी, किसी मनुष्य में इतना सामर्थ्य नहीं की उसकी योजनाएँ नियति को विफल कर सके और यदि द्रौपदी की नियति में अर्जुन है तो वह अवश्य पधारेगा।" देवी पार्वती व्याकुल हो उठती है, एक तरफ़ महादेव द्रौपदी के साथ अर्जुन के विवाह को वासुदेव की योजना बताते है और दूसरे ही क्षण योजना पर सदेह प्रकट करते है। वह पुनः प्रश्न करती है-" काशी कुमारी अम्बा ने महाराज शाल्व को अपना पति मान लिया था। उनके स्वयंवर को यह कहकर छल सिद्ध कर दिया गया था कि उन्होंने पहले से ही अपने पति का वरण कर लिया था। कुमारी द्रौपदी ने भी अर्जुन को मन और ह्रदय से अपना पति मान लिया है, तो क्या यह स्वयंवर भी छल नहीं?" महादेव उत्तर देते है-" स्वयंवर एक धर्म कार्य है गौरी। यदि इसका आशय शुद्ध हो तो यह छल नहीं। काशी नरेश का हस्तिनापुर को ना आमन्त्रित करने का आशय उचित नहीं था। इस स्वयंवर का आशय ही है आर्यावर्त में धर्म की स्थापना और धर्म की स्थापना छल नहीं हो सकती।" वह फिर प्रश्न करती है-" राजकुमारी द्रौपदी का विवाह उसी व्यक्ति के साथ होगा जो इस स्वयंवर में विजयी होगा। क्या इस स्वयंवर को जीतने का सामर्थ्य सिर्फ अर्जुन में है?" महादेव उनके इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते है-" किसी वृक्ष पर सिर्फ एक ही पुष्प हो, यह कैसे संभव हो सकता है। कर्ण भी इस स्वयंवर को जीतने का सामर्थ्य रखता है। यह तो द्रौपदी की इच्छा है कि वो किसका वरण करेगी।" देवी पार्वती के प्रश्नों से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह श्रीकृष्ण की लीला समझ नहीं पा रही थी। द्रौपदी के स्वयंवर में अब आगे क्या होने वाला था, यह जानने के लिए उनकी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।

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