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चोर

विक्षनरी से
दो चोर

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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चोर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. जो छिपकर पराई वस्तु का अपहरण करे । स्वामी की अनुपस्थिति या अज्ञानता में छिपकर कोई चीज ले जानेवाला मनुष्य । चूराने या चोरी करनेवाला । मुहा॰— चोर की दाढ़ी में तिनका = चोर का सशंकित रहना । चोर के घर छिछोर = दे॰ 'चोर के घर ढिंढोर' । चोर के घर ढिंढोर = पक्के बदमाश से किसी नौसिखुए का उलझना । चौर के घर में मोर पड़ना = धूर्त के साथ धूर्तता होना । चोर के पाँव कितने = चोर की हिम्मत कम होती है । उ॰— इन गीदड़ भपकियों में हम न आने के चोर के पाँव कितने । — फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ २३८ । चोर चोर मौसेरै भाई = बुरै लोगों में स्नेह सहयोग होना । चोर पड़ना = चोर का आकर कुछ चुरा ले जाना । चोर पर मोर पड़ना = धूर्त के साथ धूर्तता होना । चालाक के साथ चालाकी होना । चोर से कहे चोरी करो, शाह से कहना जागता हर = दो विरोधी तत्वों को प्रोत्साहन देना । उ॰— पुलिसवाले चोर से कहें चोरी कर शाह से कहें जागता रह । — फिसाना॰ , भा॰ ३, पृ॰ ८४ । चोरों का पीर उठाईगीर = चोरों से भी बड़ा उचक्का । चोरी से धोखा बड़ा ठहराना । उ॰— यह शख्स बदमास भी परले सिरे के थे । चोरों के पीर उठाई गीरों के लँगोटिए यार । — फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ ४१ । मन में चोर बैठना=मन में किसी प्रकार का खटका या संदेह होना । यौ॰— चोर चकार = चोर उचक्का । चोरीचकारी, चोरीचिकारी = चोरी पूर्ण मजाक । उ॰— क्या चोरीचिकारी की । खुदा न ख्वासता किसी को कत्ल कर डाला किसी को मार डाला किसी का घर फाँदे । — फिसाना॰ भा॰ ३, पृ॰ ७९ । कामचोर । मुँहचोर ।

२. घाव आदि में वह दूषित या विकृत अंश जो अनजान में अंदर रह जाता है और जिसके ऊपर का घाव अच्छा हो जाता है । विशेष— ऐसा दूषित अंश अंदर ही अंदर बढ़था रहता है और शीघ्र ही उस घाव का मुँह फिर से खोलना पड़ता है ।

३. वह छोटी संधि या अवकाश जिसमें से होकर कोई पदार्थ बह या निकल जाय जिसके कारण इसी प्रकार का और कोई अनिष्ट हो । जैसे, छत में का चोर । मेंहदी का चोर । विशेष— मेंहदी का चोर हथेली की संधियों आदि का वह सफेद अंश कहलाता है जिसपर असावधानी से मेंहदी नहीं लगती या दाब पड़ने से मेंहदी के सरक जाने के कारण रंग नहीं चढ़ता । यद्यपि इससे किसी प्रकार का अनिष्ट नहीं होता, तथापि यह देखने में भद्दा जान पड़ता है ।

४. खेल में वह लड़का जिससे दूसरे लड़के दाँव लेते हैं और जिसे औरों की अपेक्षा अधिक श्रम का काम करना पड़ता है । विशेष— चोर को प्रायः दूसरे खिलाड़ियों को छूना, ढूँढ़ना या अपनी पीठ पर चढ़ाकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना पड़ना है । खेत में चोर जिसे छूता या ढूँढ लेता है वही चोर हो जाता है । मुहा॰— चोर चोर खेलना = इस प्रकार का खेल खेलना ।

५. ताश या गंजीफे आदि का वह पत्ता जिसे खिलाड़ी अपने हाथ में दबाए या छिपाए रहता है और जिसके कारण दूसरे खिलाड़ियों की जीत में बाधा पड़ती है । यों॰— गुलाम चोर = ताश का एक खेल जिसमें गड्डी में का एक पत्ता गुप्त रूप से निकालकर छिपा दिया जाता है और शेष पत्ते सब खिलाड़ियों में रंग और टिप्पियों के हिसाबसे जोड़ा मिलाने के लिये बाँट दिए जाते हैं । अंत में किसी खिलाड़ी के हाथ में छिपाए हुए पत्ते के जोड़ का पत्ता रह जाता है । जिसके हाथ में वह पत्ता रह जाता है, वह भी चोर कहलाता है ।

६. चोरक नाम का गंधद्रव्य ।

७. (मन गी) दुर्भावना । जैसे, मन का चोर ।

८. रहस्य संप्रदाय का पारिभाषिक शब्द जिसका अर्थ है षड्विकार या मृत्यु ।

चोर ^२ वि॰ १ जिसके वास्तविक स्वरूप का ऊपर से देखने से पता न चले ।

चोर उरद संज्ञा पुं॰ [हिं॰ चोर उरद] उरद का वह कड़ा दाना जो न तो चक्की में पिसता है और न गलाने से गलता है ।