अङ्ग
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अंग ^१ संज्ञा पुं॰ [ सं॰ अङ्ग]
१. शरीर । बदन । देह । गात्र । तन । जिस्म । उ॰— अभीशाप ताप की ज्वाला से जल रहा आज मन और अंग ।— कामायनी, पृ॰ २
६२. ।
२. शरीर का भाग अवयव । उ॰— भूषन सिथिल अग भूषन सिथिल अंग— भूषण ग्रं॰, पृ॰१२९ । मुहा॰—अग उभरना = युवावस्था आना अंग करना = स्वीकार करना । ग्रहण करना । उ॰— (क) जाकौ मनमोहन अंग करै ।— सूर (शब्द॰) । (ख) जाको हरि दृढ करि अंग करयो ।— तुलसी (शब्द॰) । अंग छूना= शपथ खाना । माथा छूना । कसम खाना । उ॰— सूर हृदय से टरत गोकुल अंग छुवत हौं तेरी ।— सूर (शब्द॰) ।अंग टूटना= जम्हाई के साथ आलस्य से अंगों का फंलाया जाना । अंगड़ाई आना । अंग तोड़ना ।— अँगड़ाई लेना । अंग धरना = पहनना । धारण करना । व्यवहार करना । अंग में मास न जमना = दुबला पतला रहना । क्षीण रहना । उ॰— नैन न आवै नींदड़ी , अंग न जमै मासु ।— कबीर सा॰ सं॰, भ॰ १, पृ॰ ४३ । अंग मोडना = (१) शरीर के भगों को सिकोड़ना । लज्जा से देह छिपाना । (२) अँगड़ाई लेना । उ॰— अंगन मोरति भोर उठी छिति पूरति सुगंध झकोरन ।— व्यंगार्थ (शब्द॰) । (३) पीछे हटना । भागना । नटना । बचना । उ॰— रे पतंग नि: शंक जल, जलत न मोड़ै अंग । पहिले । तो दीपक जलै पीछे जलै पतंग (शब्द॰) । अंग लगाना =(१) आलिगन कतरना । छती से लगाना । (२) शरीर पुष्ट होना । उ॰— ' वह खाता तो बहुत है पर उसके अंग नहीं लगता' (शब्द॰) । (३) काम में आना । उ॰— ' किसी के अंग लग गया , पड़ा पड़ा क्या होता' (शब्द॰) । (४) हिलना । परचना । उ॰— ' यह बच्चा हमारे अंग लगा है' (शब्द॰) । अंग लगाना या अंग लाना पुं॰ = (१) आलिगन करला । छाती से लगाना । परिरंभण करना । लिपटाना । उ॰— पर नारी पैनी छुरी कोउ नहिं लाओं अंग । (शब्द॰) (२) हिलाना । परचाना । (३) विवाह देना । विवाह में देना । उ॰— ' इस कन्या को किसी के अंग लगा दे' (शब्द॰) । (४) अपने शरीर के आरम में खर्च करना ।
३. भाग । अंश । टुकड़ा ।
४. खंड़ । अध्याय । जैसे— ' गुरूदेव कौ अंग', ' चितावनी कौ अंग', ' सूषिम मारग कौ अंग' ।— कबीर ग्रं॰ ।
५. ओर । तरफ । पक्ष । उ॰— सात स्वर्ग अपवर्ग ससुख धरिय तुला इक अंग ।— तुलसी (शब्द॰) ।
६. भेद । प्रकार । भआंति । तरह । उ॰— (क) कृपालु स्वामी सारिखो, राखै सरनागत सब अंग बल बिहीन को ।— तुलसी ग्रं॰, पृ॰ ५६४ । (ख) अंग अंग नीके भाव गूढ भाव के प्रभआव, जानै को सुभाव रूप पटि पहिचानी है ।— केशव (शब्द॰) ।
७. आधार । आलंबन । उ॰— राधा राधारमन को रस सिगा र में अंग ।— भिखारी॰ ग्रं॰, भथआ॰ १, पृ॰य ४ ।
८. सहायक । सुहृद । पक्ष का । तरफदार । उ॰— रौरे अंग जोग जग ,को है ।— मानस, २ ।२
८४. ।
९. एक संबोधन । प्रिय । प्रियवर । उ॰— यह निश्चय ज्ञानी को जाते कर्ता दीखै करै न अंग ।— निश्चल (शब्द॰) ।
१०. जन्मलग्न (ज्यो॰) ।
११. प्रत्यय- युत्क शब्द का प्रत्यय रहित भाग । प्रकृति । ( व्या॰) ।
१२. छह की संख्या । उ॰— बरसि अचल गुण अंग ससी संवति, तवियौ जस करि श्रीभरतार ।— वेलि, दू॰ ३०५ । १३ वेद के
६. अंग; यथा - शिक्षा, कल्प, व्याकरण , निरूत्क, ज्योतिष और छंद । दे॰ ' वेदांग' ।
१४. नाटक में श्रृगर और वीर रस को छोड़कर शेष रस जो अप्रधान रहते हैं ।
१५. नाटक में नायक या अंगी का कार्यसाधक पात्र ; जैसे — ' वीरचरित' में सुग्रीव, अंगद, विभषण आदि ।
१६. नाटक की ५ संधियो के अंतर्गत एक उपविभआग ।
१७. मन । उ॰— सुनत राव इह कथ्थ फुनि, उपजिय अचरच अंग । सिथिल अंग धीरज रहित, भयो दुमति मति पंग ।— पृ॰ रा॰ ३ ।
१८. ।
१८. साधन जिसके द्वार कोइ कार्य संपादित किया जाय ।
१९. सेना के चार अंग वा विभाग; यथा— हाथी, घोड़े रथ और पैदल । दे॰ 'चतुरंगिणी' ।
२०. राजनीति के सात अंग; यथा — स्वामी, अमात्य, सुहृद्, कोष, राष्ट्र, दुर्ग और सेना । म
२१. योग के आठ अंग; यथा— यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा ऐर समाधि । दे॰ ' योग' ।
२२. बंगाल में भागलपुर के आसपास का प्राचीन जनपद जिसकी राजधानी चंपापुरी थी । कहीं कहीं विस्तार वैद्यानाथ से लेकर भुवनेश्वर (अड़ीसा, उत्कल) प्रदेश तक लिखा है ।
२३. ध्रुव के वंश का एक राजा ।
२४. एक भत्क का नाम ।
२५. उपाय ।
२६. लय़क्षण ।चिह्न (को॰) ।
अंग ^२ वि॰
१. अप्रधान । गौण ।
२. उलटा । प्रतीप ।
३. प्रधान ।
४. निकट । समीप (को॰) ।
५. अंगोंवाला (को॰) ।
अंग ^३ पुं॰ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ आज्ञा] आज्ञा ।आदेश । उ॰— सो निज स्वामिनि अंग सुनि क्रमिय सुअथ्थह कब्ब ।— पृ॰ रा॰, ६१ ।७६६ ।