सात्यकि
सात्यकि महाभारत में एक वीर जो यादवों का सेनापति थे। सत्यकि यादवों के एक कुल का राजकुमार, वासुदेव कृष्ण का अभिन्न मित्र एवं महाभारत के समय पाण्डवों की ओर से लडने वाला एक योद्धा था। वह उन चंद लोंगों में से था जो कि महाभारत के बाद जीवित बच गए थे।
सात्यकि, शिनि का पुत्र जिसको 'दारुक', 'युयुधान' तथा 'शैनेय' भी कहते हैं। द्वारिका में श्रीकृष्ण की सेना के एक अधिकारी सत्यक के पुत्र होने से इसका नाम सात्यकि पड़ा। इसने अर्जुन से धनुर्विद्या सीखी थी और महाभारत के समय श्रीकृष्ण की पूरी सेना ने कौरवों की तरफ से युद्ध किया परंतु गुरु अर्जुन विरुद्ध युद्ध ना करने की प्रार्थना को श्रीकृष्ण ने स्वीकार कर सात्यकि को पांडवों की ओर से युद्ध की अनुमति दी थी। श्रीकृष्ण का सारथी और नातेदार था। पांडवों की ओर से लड़ा। इसी ने आगे चलकर कृतवर्मा का वध किया था।[1] महाभारत युद्ध से पूर्व जब कृष्ण हस्तिनापुर कौरवों को समझाने के लिए शांति संदेश ले कर आये थें तो उस वक्त उनके साथ केवल सात्यकि ही आये थे।[2]
सात्यकि महाभारत में अर्जुन के कारण जीवित बचा रहा, उसकी मत्यु बाद में यादवों के आपसी मौशल युद्ध में हुई।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "मुखपृष्ठ". hi.krishnakosh.org. मूल से 18 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 अप्रैल 2020.
- ↑ "मुखपृष्ठ". hi.krishnakosh.org. मूल से 17 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 अप्रैल 2020.
बहरी कड़ी महाभारत के अनुसार सात्यकि यदुकुल का एक प्रतापी योद्धा था । जब उपप्लव्या नामक नगर में पांडो अपनी अज्ञातवास अवधि समाप्त करके यही स्थान पर मंत्राणा के लिए सभी प्रतापी वीर राजाओं को न्योता दिया था आने को। जिस समारोह में अभिमन्यु और उतरा का विवाह हुआ था । इसी उपप्लाव्यकी बैठक में भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी और सात्यकि का विचाराविवाद हुआ था जिसमें सात्यकि ने सीधे तौर पर कौरव पर आक्रमण करके पांड्यो को अपना राज्य पाने के लिए जोर दिया था। सात्यकि का बात का समर्थन राजा द्रुपद ने भी किया था।।