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विकिपीडिया वार्ता:विवादास्पद वर्तनियाँ

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हमें कुछ नियमों को अंतिम मान लेने से पहले यहाँ बातचीत कर लेनी चाहिए।

बिन्दु और चंद्रबिन्दु

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सबसे विवादास्पद नियम अनुस्वार और अनुनासिक का रहा है। इसी के साथ चंद्रबिन्दु कहाँ प्रयोग किया जाय और कहाँ नहीं उसके नियम भी आसानी से समझाए जाएँ इस बात की आवश्यकता है। डा. व्योम, इस विषय में अपने विचार यहाँ लिखें तो अच्छा रहेगा।--पूर्णिमा वर्मन १५:४७, ३१ मार्च २००९ (UTC)
धन्यवाद पूर्णिमा जी, हिन्दी में चन्द्रबिन्दु "अँ " और "अं" को लेकर काफी परेशानी सामने आती है। इसे यहाँ स्पष्ट करते हैं- अनुनासिक- "अँ" को चन्द्रबिन्दु भी कहते हैं। ऐसे स्वर जिनका उच्चारण नाक और मुँह दोनों से होता है जैसे- चाँद, साँझ, आँख, गाँव आदि। यदि शिरोरेखा के ऊपर किसी मात्रा का प्रयोग हुआ हो तो फिर चन्द्रबिन्दु की जगह पर "अं" का ही प्रयोग होता है। जैसे- सोंठ, दोनों, आदि।....अनुस्वार- "अं" जब किसी स्वर का उच्चारण नाक से किया जाए तब अनुस्वार "अं" का प्रयोग होता है। जैसे- हंस, वंश, कंस, निरंकुश, अंगूर, मंगल आदि। डा० जगदीश व्योम १६:५०, ३१ मार्च २००९ (UTC)
अनुस्वार और अनुनासिक का प्रयोग स्वरों के साथ होता है इसी तरह व्यंजन वर्णों के लिए भी नियम निर्धारित हैं- जेसे- "क" वर्ग, "च" वर्ग, "ट" वर्ग, "त" वर्ग, "प" वर्ग। जिस व्यंजन से पहले अनुस्वार आता है उसी वर्ग के पंचमाक्षर का प्रयोग किया जाता है जैसे- बिन्दु, पम्प, चञ्चु, घमण्ड आदि। परन्तु यहाँ हम सुविधा के लिए थोड़ी सावधानी रखते हुए बिन्दु का प्रयोग कर सकते हैं। जैसे- बिंदु, गंगा, पंप, कंधा, घमंड आदि। डा० जगदीश व्योम १७:४३, ३१ मार्च २००९ (UTC)
डा० व्योम ने अनुस्वार और चन्द्रबिन्दु के प्रयोग का औचित्य भली प्रकार उदाहरण सहित स्पष्ट किया है। इसे और भी स्पष्ट करते हुए कहा जा सकता है कि केवल अ और आ के साथ नासिका के उच्चारण का पुट हो वहाँ चन्द्रबिन्दु और अन्य स्वरों के साथ नासिका का उच्चारण हो वहाँ केवल बिन्दी लगाई जाना चाहिये। जहाँ वर्ग के पञ्चम वर्ण ङ ञ् ण् न् म् का उच्चारण करना हो वहाँ अनु्स्वार का प्रयोग करना चाहिये।-- नित्यगोपाल कटारे

डॉ जगदीश व्योम जी के इस कथन जिस व्यंजन से पहले अनुनासिक आता है उसी वर्ग के पंचमाक्षर का प्रयोग किया जाता है में 'अनुनासिक' के स्थान पर 'अनुस्वार' होना चाहिए l - ओम नीरव

ओम नीरव जी ! धन्यवाद त्रुटि की ओर इंगित करने के लिए..... उक्त गलती को सही कर दिया है--डा० जगदीश व्योमवार्ता 17:35, 10 मई 2015 (UTC)उत्तर दें

बिन्दु और चन्द्रबिन्दु के प्रयोग के विषय में ये तो स्पष्ट है ही कि चन्द्रबिन्दु का प्रयोग करने पर नाक और मुँह दोनों से ध्वनि साथ निकलती है, जबकि बिन्दु का प्रयोग करने पर ध्वनि नाक से दो वर्णों के बीच में निकलती है। इसे समझने के लिए सबसे सटीक उदाहरण 'हंस' और 'हँस' शब्द हैं। दोनों ही हिन्दी में प्रयोग होते हैं, और दोनों का भिन्न अर्थ होता है। हंस लिखने पर 'न/' की ध्वनि 'ह' और 'स' के बीच में निकलती है, जबकि हँस में ध्वनि 'ह' के साथ ही निकलती है। इस प्रकार हम उच्चारण के आधार पर तय कर सकते हैं, कि दोनों में से किसका प्रयोग उपयुक्त होगा। -- अंशुल खण्डेलवाल

मेरा सुझाव

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उपरोक्त के बारे में मेरे विचार से यदि किसी लेख के नाम के लिए कम से कम ये बात तय कर ली जाए, कि नाम में मात्र अनुस्वार ही प्रयोग हो तो अधिकांश प्रयोक्ताओं के लिए सरल हो पाएगा। या यदि किसी लेख का नाम जैसे आँख है, तो उस पर बनाने वाला आंख को भी आवश्यक रूप से पुनर्निर्देशित कर दे। इस प्रकार सही वर्तनी भी सुरक्शःइत रहेगी, और सर्व सुलभ भी होगा। वैसे सरकारी कार्यालयों के लिए केन्द्रीय हिन्दी संस्थान ने अं की बिन्दी का प्रयोग सुझाया है, हर जगह, जिससे कि एक मानक बन पाए, व सभी लोग हिन्दी में सरलता से काम कर पाएं। इस पर भी विचार कर सकते हैं। वर्ना शुद्ध रूप यदि बन जाए और सर्वसुलभ भी ना हो, तो पूरा फायदा नहीं होगा।

व्याकरण के नियम अनुसार :

  • अं की मात्रा जिस अक्षर के पहले लगाई जा रही हो, उस अक्षर के वर्ग के अंत वाले अक्षर के नीचे, अगला अक्षर लिखा जाता है। जैसे कि:
कंघा के लिए घ है कवर्ग का, जिसका अंतिम अक्षर है ड़, तो हमें [[चित्र:|30px]] लिखना होगा। या गंगा के लिए लिखना होगा।
चंचल के लिए चवर्ग के अंत का अक्षर ञ लगा कर यानि चञ्चल लिखना होगा।
हंटर के लिए टवर्ग का अंतिम अक्षर ण लगा कर- हण्टर लिखना होगा।
मंतर के लिए तवर्ग का अंतिम अक्षर न लगाकर मन्तर लिखना होगा।
और अंतिम जांबवंत के लिए पवर्ग का अंतिम अक्षर म लगाकर जाम्बवंत लिखना होगा। वैसे जांबवंत की पूरी सही वर्तनी होगी जाम्बवन्त।
किंतु इतना विस्तृत ज्ञान सभी को हो, बहुत मुश्किल है। अतएव केन्द्रीय हिन्दी संस्थान द्वारा जारी गाइडलाइन्स के अनुसार (जो कि सभी सरकारी कार्यालयों में हिन्दी का कार्य सुनिश्चित करता है) अं की बिन्दी लगाना स्वीकार्य माना गया है। उपरोक्त वर्तनी सही तो ह्गै, उसे गलत तो नहीं कहेंगे- किंतु अंग की बिंदी भी मान्य है। अतएव विकिपीडीया में, जहां सर्च इंजन भि कार्यरत है, और वर्तनियों का मानक होना सही प्रचालन के लिए अनिवार्य है, मेरे विचार से अं की बिंदी को मानक किया जा सकता है। और यदि कोई कम से कम शीर्षक को आधे अक्षर के संग बना भी देता है, तो कृपया उसका अं की मात्रा वाला एक लेख पृष्ठ बनाकर उसे मुख्य लेख को मात्र पुनर्निर्देशित कर अवश्य दे।

उपरोक्त अंश मैंने चौपाल के पुरालेख से लिया है। शेष जैसी विद्वान सदस्यों की सम्मति।--आशीष भटनागरसंदेश १८:३८, १२ मई २००९ (UTC)

हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण

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इस सन्दर्भ में मैं शीघ्र ही एक लेख "हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण" शीर्षक से लिख रहा हूँ।
--डा० जगदीश व्योम ०१:३६, १३ मई २००९ (UTC)

आपके योगदान की प्रशंसा कर सूरज को दीपक क्या दिखाऊं। लेकिन एक राय देना चाहूंगा, कि इस मानकीकरण लेख में आप नए (layman) लेखकों का अधिक ध्यान रखें, हिन्दी की शुद्धता की सीमा में रहते हुए। जिससे कि नए लोग भी सरलता से हिन्दी में सहज और अच्छी मात्रा का योगदान दे पाएं। धन्यवाद: --आशीष भटनागरसंदेश ११:०८, १३ मई २००९ (UTC)

अनुभाग-समुच्चय बोधक और संबंध बोधक शब्दों का प्रयोग

जैसा इसमें कहा गया है ऐसा कोई नियम नहीं है । मैंने आज तक "किसीको" नहीं देखा । जहाँ हिन्दी में अव्यवस्था है वहाँ ज़बरदस्ती व्यवस्था लाना सही नहीं है ।Maquahuitl ०४:२९, ३ जून २००९ (UTC)