कागज उद्योग
कागज उद्योग, कच्चे माल के रूप में लकड़ी का उपयोग करते हुए लुगदी, कागज, गत्ते एवं अन्य सेलुलोज-आधारित उत्पाद निर्मित करता है। वैश्विक, आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था में कागज के योगदान की उपेक्षा नहीं की जा सकती है क्योंकि बिना कागज के सम्पूर्ण कार्यप्रणाली का पूर्ण हो पाना सम्भव नहीं रहा है। शिक्षा का प्रचार-प्रसार, व्यापार, बैंक, उद्योग तथा सरकारी व गैरसरकारी, संस्थानों या प्रतिष्ठानों में कागज का ही बहुधा प्रयोग किया जाता है। विश्व की लगभग सभी प्रक्रियाओं की शुरूआत कागज से ही प्रारम्भ होती है। कागज व्यक्ति व समाज के विकास में ‘‘आदि और अन्त’’ दोनों प्रकार की भूमिका का निर्वहन करता है। इस तरह मानवीय सभ्यता का विकास व उन्नति कागज के ही विकास से सम्बन्धित है।
इतिहास
[संपादित करें]कागज निर्माण की कला का प्रथम सूत्रपात 105 ई0 में चीन की इंपीरियल अदालत से सम्बद्ध हान राजवंश (202 ई0 पू0) के मुख्य शासक हो-टिश के राज दरबार में ‘त-साई-लून’ नामक व्यक्ति ने किया था। उसने विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों जैसे भांग, शहतूत, वृक्ष की छालों तथा अन्य लताओं के रेशों द्वारा कागज निर्माण की कला का प्रयोग प्रारम्भ किया। त-साई-लून द्वारा निर्मित यह कागज अत्यन्त चमकीला, मुलायम, लचीला व चिकना होता था। कागज निर्माण की यह प्रक्रिया धीरे-धीरे सार्वभौमिक हुई तथा सम्पूर्ण विश्व में कागज निर्माण की कला का व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार किया गया। इस तरह त-साई-लून का सम्मान ‘‘कागज के सन्त’’ के रूप में होने लगा। चीन में कागज की खोज के पश्चात् भारत में कागज निर्माण एवं उपयोग के प्रथम संकेत, सिन्धु घाटी की सभ्यता से मिलते हैं। द्वितीय संकेत यह है कि भारत में कागज नेपाल के मार्ग से आया परन्तु इस सम्बन्ध में इसकी अस्तित्वता एवं विश्वसनीयता का कोई स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ है। तृतीय संकेत , 671 ई0 में जब चीनी यात्री इत्सिंग ने स्वयं अपनी पुस्तक में उद्धृत किया कि कागज का प्रथमतया आदान-प्रदान भारत में हुआ। दुर्भाग्यवश इसका भी कोई स्पष्ट साक्ष्य प्राप्त नहीं हो पाया।[1]
अलबरूनी ने स्पष्ट विवरण दिया कि कागज का अविष्कार चीनियों द्वारा ही किया गया है। अरबवासियों ने चीनी कैम्पों पर कब्जा कर चीनियों को अपने अधिकार क्षेत्र में लेकर कागज निर्माण की तकनीकी का ज्ञान प्राप्त किया। 4 यह तकनीक समरकन्द और पश्चिम की ओर विस्तृत होकर विश्व के शेष भाग में प्रसारित हो गयी।
उत्पादन की मात्रा के अनुसार मुख्य देश
[संपादित करें]Rank 2011 |
Country | Production in 2011 (1,000 ton) |
Share 2011 |
Rank 2010 |
Production in 2010 (1,000 ton) |
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1 | चीन | 99,300 | 24.9% | 1 | 92,599 |
2 | संयुक्त राज्य अमेरिका | 75,083 | 18.8% | 2 | 75,849 |
3 | जापान | 26,627 | 6.7% | 3 | 27,288 |
4 | जर्मनी | 22,698 | 5.7% | 4 | 23,122 |
5 | कनाडा | 12,112 | 3.0% | 5 | 12,787 |
6 | दक्षिण कोरिया | 11,492 | 2.9% | 8 | 11,120 |
7 | फिनलैंड | 11,329 | 2.8% | 6 | 11,789 |
8 | स्वीडन | 11,298 | 2.8% | 7 | 11,410 |
9 | ब्राज़ील | 10,159 | 2.5% | 10 | 9,796 |
10 | इण्डोनेशिया | 10,035 | 2.5% | 9 | 9,951 |
World Total | 398,975 | 100.0% | 394,244 |
भारत में कागज उद्योग
[संपादित करें]भारत में कागज उद्योग का शुभारम्भ मुगल काल में हुआ जब काश्मीर के सुल्तान जैनुल आबिदीन द्वारा (1417-1467 ई0) कश्मीर में प्रथम कागज उत्पादक मिल की स्थापना की गयी। आधुनिक तकनीक पर आधारित कागज उद्योग से सम्बन्धित प्रथम कागज उत्पादक मिल की स्थापना सन् 1870 में, कलकत्ता के निकट हुगली नदी के तट पर 'बाली' नामक स्थान पर स्थापित की गयी थी। इसके पश्चात् सन् 1882 टीटागढ़ में , टीटागढ़ कागज मिल्स तथा सन् 1887 बंगाल कागज निर्माण फैक्ट्री की स्थापना हुई परन्तु यह मिलें कागज उत्पादन करने में असफल रहीं। प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् सन् 1925 जगाधारी में गोपाल पेपर मिल व आन्ध्र पेपर मिल सन् 1933 बरेजादी (गुजरात) में गुजरात पेपर मिल सन् 1936 सहारनपुर में स्टार पेपर मिल तथा सन् 1937 कर्नाटक में मैसूर पेपर मिल की स्थापना हुई। विदेशी कागज के आयात में अत्यन्त कठिनाई का अनुभव होने से इन मिलों ने अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए व्यापक कदम उठाये और आधुनिक संयंत्रों का प्रयोग किया। इस तरह स्वतन्त्रता के पश्चात् सन् 1951 में 17 कागज मिलें स्थापित हुई तथा वर्तमान समय में लगभग 600 से अधिक (लघु व मध्यम) कागज इकाइयांँ उत्पादन कार्य में विशिष्ट योगदान प्रदान कर रही हैं।
भारत में कागज उद्योग की स्थापना एवं कागज प्रयोग के पश्चात् इसके महत्त्व एवं उपयोग में भारी वृद्धि हुई। भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व की कार्यप्रणाली कागज पर ही आश्रित हो गयी। वर्तमान समय में विविध प्रकार के कागज एवं उससे सम्बन्धित उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है। इन कागजाें में प्रमुख रूप से बैंक कागज, बाँण्ड कागज, बुक कागज, चीनी कागज, वूव कागज, फोटो कागज, इंकजेट कागज, सूत कागज, क्राँफ्ट कागज, वाशी कागज, मुद्रण कागज, डांइंग कागज, वैक्स कागज व वॉल कागज इत्यादि है। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में कागज उद्योग का कुल टर्नओवर 17,000 करोड़ रूपये है तथा 2500 करोड़ रूपये भारत सरकार के खाते में राष्ट्रीय योगदान करता है। भारत में प्रति व्यक्ति कागज उपभोग 7.2 किग्रा0 है जो अन्य देशों की तुलना में कम है। भारत में यह उद्योग 0.12 लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रूप से तथा 0.34 लाख व्यक्तियों को अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार प्रदान करता है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ पी0 के0 गोडे, (1960), स्टडीज इन इण्डियन कल्चरल सोसायटी, पी0 के0 गोडे कलेक्शन वर्क्स, पूना