लाला अमरनाथ
इस जीवित व्यक्ति की जीवनी में कोई भी स्रोत अथवा संदर्भ नहीं हैं। कृपया विश्वसनीय स्रोत जोड़कर इसे बेहतर बनाने में मदद करें। जीवित व्यक्तियों के बारे में विवादास्पक सामग्री जो स्रोतहीन है या जिसका स्रोत विवादित है तुरंत हटाई जानी चाहिये, खासकर यदि वह मानहानिकारक अथवा नुकसानदेह हो। (फ़रवरी 2017) |
लाला अमरनाथ या नानिक अमरनाथ भारत के क्रिकेट के खिलाड़ी थे। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भारत की ओर से पहला शतक जमाया था। वे भारत के पहले आलराउंडर थे जिन्होंने बल्ले के अलावा गेंद से भी अपने विरोधियों की नाक में दम किया। उन्हें भारत सरकार द्वारा सन १९९१ में खेल के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। वे दिल्ली के मूलनिवासी थे। लाला अमरनाथ का जन्म एक कायस्थ परिवार में हुआ।
लाला अमरनाथ का पांच अगस्त 2000 को 88 बरस की उम्र में दिल्ली में निधन हुआ। तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने शोक संदेश में उन्हें भारतीय क्रिकेट का आइकन करार दिया था।
खेल जीवन
[संपादित करें]इंग्लैंड और भारत के बीच 1933 में बंबई जिमखाना में भारतीय सरजमीं पर पहले टेस्ट में पदार्पण करते हुए लाला ने 118 रन की पारी खेली जिस पर दर्शकों ने झूमते हुए मैदान में घुसकर पिच पर ही उन्हें फूल मालाओं से लाद दिया। 11 सितंबर 1911 को अविभाजित भारत के कपूरथला में जन्में लाला बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और उन्होंने गेंदबाजी और बल्लेबाजी से टीम के लिए अहम भूमिका निभाने के अलावा चयनकर्ता, मैनेजर, कोच और प्रस्तोता के रूप में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। वर्ष 1947-48 में आस्ट्रेलिया के दौरे के साथ स्वतंत्र भारत के पहले कप्तान बने लाला ने 24 टेस्ट में एक शतक और चार अर्धशतक की मदद से 24.38 की औसत से 878 रन बनाने के अलावा 32.91 की औसत से 45 विकेट भी चटकाए। उन्होंने 186 प्रथम श्रेणी मैचों में 10,000 से अधिक रन बनाने के अलावा 22.98 की बेहतरीन औसत के साथ 463 विकेट भी अपने नाम किए। दाएं हाथ के बल्लेबाज और मध्यम तेज गति के गेंदबाज लाला को ऐसे क्रिकेटर के रूप में जाना चाहता है जिन्होंने भारतीय क्रिकेट में राजसी वर्चस्व को चुनौती दी।
इस दिग्गज खिलाड़ी को हालांकि इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा जब 1936 में इंग्लैंड दौरे के दौरान कप्तान विजियानगरम के महाराज कुमार ने 'अनुशासनहीनता' के कारण उन्हें विवादास्पद तरीके से स्वदेश वापस भेज दिया। लाला और उनके अन्य साथियों ने हालांकि आरोप लगाया कि ऐसा राजनीतिक कारणों से किया गया। इसके बाद लाला को अगला टेस्ट खेलने के लिए 12 बरस का इंतजार करना पड़ा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और घरेलू क्रिकेट में रनों का अंबार लगाते रहे। अंतत: चयनकर्ताओं को भी उनके आगे झुकना पड़ा और उन्होंने 1946 में इंग्लैंड दौरे के साथ एक बार फिर राष्ट्रीय टीम में वापसी की। हालांकि तब उनकी बल्लेबाजी से ज्यादा धार उनकी गेंदबाजी में थी।
एक साल बाद विजय मर्चेट के टीम से हटने पर आस्ट्रेलिया के पहले दौर पर उन्हें भारतीय टीम की कमान सौंपी गई लेकिन उस समय महान बल्लेबाज डान ब्रैडमैन शानदार फार्म में थे और आस्ट्रेलिया ने भारतीय टीम को रौंद दिया। लाला इस सीरीज के पांच टेस्ट के दौरान नाकाम रहे और 14 की औसत से रन बनाने के अलावा केवल 13 विकेट ही हासिल कर पाए लेकिन अभ्यास मैचों में उन्होंने विक्टोरिया के खिलाफ 228 रन की पारी खेली। नील हार्वे ने इस पारी की तारीफ करते हुए कहा था कि उन्होंने इस पारी के दौरान सर्वश्रेष्ठ कवर ड्राइव देखा। ब्रैडमैन को हिट विकेट आउट करने वाले लाला एकमात्र गेंदबाज थे और आस्ट्रेलिया के इस दिग्गज ने भी उनकी तारीफ करते हुए उन्हें क्रिकेट का 'बेहतरीन दूत' करार दिया था। क्रिकेट लाला के खून में बसा था और उनकी धरोहर को उनके बेटों सुरेंद्र अमरनाथ, मोहिंदर अमरनाथ और राजेंद्र अमरनाथ ने आगे बढ़ाया। सुरेंद्र ने भी अपने पिता की तरह पदार्पण मैच में शतक जमाया जबकि मोहिंदर ने भारत के लिए 69 टेस्ट खेले।