रुद्रावतार
रुद्रावतार भगवान् शिव (रूद्र ) के अवतारों को कहा जाता है।[1] शास्त्र अनुसार देवाधिदेव महादेव के अनगिनत अवतार हुए[2]। उन अवतारों में 19 अवतारों को सबसे प्रमुख माना गया है जिनका वर्णन महर्षि व्यास ने शिवमहापुराण में किया है। इसके अतिरिक्त उनके दशावतार और ग्यारह रुद्रावतार भी बताए गए हैं जिनका वर्णन महर्षि व्यास ने लिङ्ग पुराण में किया है। उन अवतारों का वर्णन नीचे दिया गया है।
शब्द व्युत्पत्ति
[संपादित करें]वेदों में शिव का नाम ‘रुद्र’ रूप में आया है। रुद्र का अर्थ होता है भयानक।[3] रुद्र संहार के देवता हैं। विद्वानों के मत से उक्त शिव के सभी प्रमुख अवतार व्यक्ति को सुख, समृद्धि, भोग, मोक्ष प्रदान करने वाले एवं व्यक्ति की रक्षा करने वाले हैं।
दस अवतार
[संपादित करें]भगवान् शिव के दस अवतार [4]
- महाकाल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में पहला अवतार महाकाल को माना जाता है। इस अवतार की शक्ति मां महाकाली मानी जाती हैं। उज्जैन में महाकाल नाम से ज्योतिर्लिंग विख्यात है।उज्जैन में ही गढ़कालिका क्षेत्र में मां कालिका का प्राचीन मंदिर है और महाकाली का मंदिर गुजरात के पावागढ़ शक्तिपीठ में है।
- तारा-शिव के रुद्रावतार में दूसरा अवतार तार (तारा) नाम से प्रसिद्ध है। इस अवतार की शक्ति तारादेवी मानी जाती हैं।यह पीठ पश्चिम बंगाल के वीरभूम में स्थित द्वारका नदी के पास महाश्मशान में स्थित है तारा पीठ। पूर्वी रेलवे के रामपुर हॉल्ट स्टेशन से 4 मील दूरी पर स्थित है।
- बाल भुवनेश-महादेव का तीसरा रुद्रावतार है बाल भुवनेश। इस अवतार की शक्ति को बाला भुवनेशी माना गया है।दस महाविद्या में से एक माता भुवनेश्वरी का शक्तिपीठ उत्तराखंड में है। उत्तरवाहिनी नारद गंगा की सुरम्य घाटी पर यह प्राचीनतम आदि शक्ति मां भुवनेश्वरी का मंदिर पौड़ी गढ़वाल में कोटद्वार सतपुली-बांघाट मोटर मार्ग पर सतपुली से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम विलखेत व दैसण के मध्य नारद गंगा के तट पर मणिद्वीप (सांगुड़ा) में स्थित है। इस पावन सरिता का संगम गंगाजी से व्यासचट्टी में होता है, जहां वेदव्यासजी ने श्रुति एवं स्मृतियों को वेद पुराणों के रूप में लिपिबद्ध किया था।
- षोडश श्रीविद्येश-भगवान शंकर का चौथा अवतार है षोडश श्रीविद्येश। इस अवतार की शक्ति को देवी षोडशी श्रीविद्या माना जाता है। ‘दस महा-विद्याओं’ में तीसरी महा-विद्या भगवती षोडशी है, अतः इन्हें तृतीया भी कहते हैं।भारतीय राज्य त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गांव के माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायाँ पैर गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी और भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं।
- भैरव-शिव के पांचवें रुद्रावतार सबसे प्रसिद्ध माने गए हैं जिन्हें भैरव कहा जाता है। इस अवतार की शक्ति भैरवी गिरिजा मानी जाती हैं।उज्जैन के शिप्रा नदी तट स्थित भैरव पर्वत पर मां भैरवी का शक्तिपीठ माना गया है,जहां उनके ओष्ठ गिरे थे। किंतु कुछ विद्वान गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरव पर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। अत: दोनों स्थानों पर शक्तिपीठ की मान्यता है।
- छिन्नमस्तक- छठा रुद्र अवतार छिन्नमस्तक नाम से प्रसिद्ध है। इस अवतार की शक्ति देवी छिन्नमस्ता मानी जाती हैं। इस अवतार में भगवान शिव की शीश रहित पूजा होती है। छिनमस्तिका मंदिर प्रख्यात तांत्रिक पीठ है।दस महाविधाओं में से एक मां छिन्नमस्तिका का विख्यात सिद्धपीठ झारखंड की राजधानी रांची से 75 किमी दूर रामगढ़ में है। मां का प्राचीन मंदिर नष्ट हो गया था अत: नया मंदिर बनाया गया, किंतु प्राचीन प्रतिमा यहां मौजूद है।
- द्यूमवान- शिव के दस प्रमुख रुद्र अवतारों में सातवां अवतार द्यूमवान नाम से विख्यात है। इस अवतार की शक्ति को देवी धूमावती माना जाता हैं।धूमावती मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ 'पीताम्बरा पीठ' के प्रांगण में स्थित है। पूरे भारत में यह मां धूमावती का एक मात्र मंदिर है जिसकी मान्यता भी अधिक है।
- बगलामुख- शिव का आठवां रुद्र अवतार बगलामुख नाम से जाना जाता है। इस अवतार की शक्ति को देवी बगलामुखी माना जाता है।दस महाविद्याओं में से एक बगलामुखी के तीन प्रसिद्ध शक्तिपीठ हैं- 1. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित बगलामुखी मंदिर, 2. मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित बगलामुखी मंदिर और 3. मध्यप्रदेश के शाजापुर में स्थित बगलामुखी मंदिर। इसमें हिमाचल के कांगड़ा को अधिक मान्यता है।
- मातंग- शिव के दस रुद्रावतारों में नौवां अवतार मातंग है। इस अवतार की शक्ति को देवी मातंगी माना जाता है।मातंगी देवी अर्थात राजमाता दस महाविद्याओं की एक देवी है। मोहकपुर की मुख्य अधिष्ठाता है। देवी का स्थान झाबुआ के मोढेरा में है।
- कमल- शिव के दस प्रमुख अवतारों में दसवां अवतार कमल नाम से विख्यात है। इस अवतार की शक्ति को देवी कमला माना जाता है।
ग्यारह रुद्रावतार
[संपादित करें]शिव के ग्यारह अवतार- कपाली, पिंगल, भीम,विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भू, चण्ड तथा भव है। ये सभी सहोदर हैं तथा यें महर्षि कश्यप के पुत्र हैं जिनकी उत्पति सुरभि की कोख से हुई थी।
उन्नीस अवतार
[संपादित करें]इनके अतिरिक्त भगवान शिव के उन्नीस अवतार सर्वाधिक प्रसिद्ध और प्रचलित हैं उनके नाम हैं-:
- वीरभद्र
- पिप्पलाद
- नन्दी
- भैरव
- अश्वत्थामा
- शरभ
- गृहपति
- दुर्वासा
- हनुमान
- वृषभ
- येतिनाथ
- कृष्णदर्शन
- अवधूत
- सुरेश्वर
- भिक्षुवर्य
- सुनटनर्तक
- किरात
- ब्रह्मचारी
- यक्ष
बारह ज्योतिर्लिंग
[संपादित करें]शिव के बारह ज्योतिर्लिंग माने गए हैं। ये सभी वे दिव्य एवम् पवित्र स्थान हैं जहाँ पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे।
ज्योतिर्लिंग | स्थान |
पशुपतिनाथ | नेपाल की राजधानी काठमांडू , केदारनाथ मंदिर का आधा भाग |
सोमनाथ | सोमनाथ मंदिर, सौराष्ट्र क्षेत्र, गुजरात |
महाकालेश्वर | श्रीमहाकाल, महाकालेश्वर, उज्जयिनी (उज्जैन) |
ॐकारेश्वर | ॐकारेश्वर अथवा ममलेश्वर, ॐकारेश्वर, |
केदारनाथ | केदारनाथ मन्दिर, रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड |
भीमाशंकर | भीमाशंकर मंदिर, निकट पुणे, महाराष्ट्र |
विश्वनाथ | काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
त्र्यम्बकेश्वर मन्दिर | त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर, नासिक, महाराष्ट्र |
रामेश्वरम | रामेश्वरम मंदिर, रामनाथपुरम, तमिल नाडु |
घृष्णेश्वर | घृष्णेश्वर मन्दिर, वेरुळ, औरंगाबाद, महाराष्ट्र |
बैद्यनाथ | परळी वैजनाथ बीड महाराष्ट्र, देवघर, झारखंड |
नागेश्वर | औंढा नागनाथ महाराष्ट्र
नागेश्वर मन्दिर, द्वारका, गुजरात |
श्रीशैल | श्रीमल्लिकार्जुन, श्रीशैलम (श्री सैलम), आंध्र प्रदेश |
पौराणिक संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ रुद्रावतारान्वक्ष्येहं तांछृणु त्वं समाहितः।
योहंकारात्मको रुद्रः स एवाभूत्खगेश्वर ॥ ३,१८.१३ ॥
सदाशिव इति त्वाख्यामवाप स विनाशकः।
तमोभिमानी स ज्ञेयस्त्वशिवत्वात्सदाशिवः ॥ ३,१८.१४ ॥ गरुडपुराणम्/ब्रह्मकाण्डः (मोक्षकाण्डः)/अध्यायः १८ - ↑ सदाशिवाद्या दश रुद्रभ्रातरः सौमित्रेयो हौहिणेयस्त्रयश्च।
समा एते मोक्षकाले सृतौ च शतैर्गुणैर्न्यूनभूताश्च ताभ्याम् ॥ ३,१८.७२ ॥ गरुडपुराणम्/ब्रह्मकाण्डः (मोक्षकाण्डः)/अध्यायः १८ - ↑ योहंकारात्मको रुद्रः स एवाभूत्खगेश्वर ॥ ३,१८.१३ ॥
गरुडपुराणम्/ब्रह्मकाण्डः (मोक्षकाण्डः)/अध्यायः १८ - ↑ शिव पुराण-गीताप्रेस गोरखपुर