बाबरनामा
(चग़ताई/फ़ारसी: بابر نامہ) या तुज़्क-ए-बाबरी मुग़ल साम्राज्य के पहले सम्राट बाबर की आत्मलिखित जीवनी है। यह उन्होंने अपनी मातृभाषा चग़ताई तुर्की में लिखी थी। इसमें उन्होंने अपना उज़्बेकिस्तान की फ़रग़ना वादी में गुज़ारा हुआ बचपन और यौवन, बाद में अफ़्ग़ानिस्तान और भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण और क़ब्ज़ा और अन्य घटनाओं का विवरण दिया है। उन्होंने हर क्षेत्र की भूमि, राजनीति, अर्थव्यवस्था, प्राकृतिक वातावरण, शहरों-इमारतों, फलों, जानवरों, इत्यादि का बखान किया है। इसमें कुछ फ़ारसी भाषा के छोटे-मोटे छंद भी आते हैं, हालांकि फ़ारसी बोलने वाले इसे समझने में अक्षम हैं। हालांकि चग़ताई भाषा विलुप्त हो चुकी है आधुनिक उज़बेक भाषा उसी की वंशज है और उसे बोलने वाले उज़बेक लोग बाबरनामा पढ़ सकते हैं। इस किताब को चग़ताई और उज़बेक भाषाओं के साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है।[1]
कुछ अंश
[संपादित करें]बाबरनामा इन सरल शब्दों के साथ आरम्भ होता है:
- "फ़रग़ना के सूबे में, सन् १४९४ में, ग्यारह साल की उम्र में मैं राजा बना।"
उन्होंने अपनी फ़रग़ना की मातृभूमि के बारे में कहा:
- "फ़रग़ना की रियासत में सात शहर हैं, पाँच दक्षिण में और दो सिर दरिया के उत्तर में। दक्षिण वालों में से एक अन्दीझ़ान है। यह बीच में स्थित है और फ़रग़ना की रियासत की राजधानी है।"
उन्होंने एक मुठभेड़ का वर्णन यह दिया:
- "एक आदमी ने इब्राहिम बेग़ पर निशाना ताना। लेकिन तभी इब्राहिम बेग़ 'हाय! हाय!' चिल्लाया और आदमी ने उसे तो निकलने दिया लेकिन ग़लती से मेरे बाजू के नीचे कांख में इतनी पास से गोली मार दी जितनी पास द्वार का एक संतरी दूसरे संतरी के खड़ा होता है। मेरे कवच की दो तख़्तियों में दरारें पड़ गई। मैंने एक आदमी पर गोली चलाई जो क़िले की दीवार के साथ अपनी टोपी ठीक करता हुआ भाग रहा था। उसने अपनी टोपी छोड़ दी और धाएँ से दीवार के साथ लगा और मरते-मरते अपनी पगड़ी का कोना अपने हाथों में बटोर लिया।"
कुछ पृष्ठभूमि देने के बाद वे अपने मध्य एशिया के एक छोटे से शासक के बनते-बिगड़ते भाग्य का बखान करते हैं, जिसमें उन्होंने समरकंद दो दफ़ा जीता और हारा और फिर १५०४ में काबुल कूच कर गए। फिर १५०८ से १५१९ के काल के बारे में किताब में कुछ नहीं है। तब तक वे काबुल में अपनी सत्ता मज़बूत कर चुके थे और वहाँ से उन्होंने पश्चिमोत्तरी भारत पर धावा बोला। बाबरनामा का अंतिम भाग १५२५ से १५२९ के काल में भारत में मुग़ल साम्राज्य के नीव रखने की गतिविधियों का वर्णन करता है, जिसपर आगे चलकर बाबर के वंशजों ने तीन सौ साल राज किया।
विवरण
[संपादित करें]- आत्मकथा: बाबरनामा को मुख्यत: तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला दौर 1494 में फरगाना के राजा बनने से लेकर 1503 तक का है। इस दौरान उसे अपना पैत्रिक राज्य गंवाना पड़ा। दूसरा दौर 1504 में काबुल का शासक बनने से लेकर 1525 तक का दौर है। अप्रैल, 1526 में दिल्ली का बादशाह बनने के बाद से लेकर सितंबर,1529 तक भारत के पूर्वी हिस्सों में सत्ता का विस्तार आत्मकथा का अंतिम दौर है। बाबरनामा की पांडुलिपि में 1508 ई से लेकर 1519 तक का विवरण उपलब्ध नहीं है। बाबरनामा में दर्शाए गए प्रत्येक चित्र की खासियत यह है कि हरेक चित्र के बीच में, कभी उपर, कभी नीचे या कहें कैनवस के खाली पड़े हिस्सों में जहां जगह खाली बच रही हो, वहां फारसी में तस्वीर के बारे में जानकारी लिखी है। बाबर ने अपनी किताब में कहा है कि सन 1504 ई में बर्फीले तूफान के बीच अपने तीन सौ साथियों के साथ मातृभूमि फरगाना से चलकर हिन्दूकुश पर्वत को पार करते हुए उसने काबुल में प्रवेश किया और खुद को वहां का शासक घोषित कर दिया। सन् 1511 ई तक उसके राय की सीमाएं ताशकंद से काबुल और गजनी तक फैल गई थीं जिसके तहत समरकंद, गोखारा, हिसार, कुंदुज और फरगना शामिल थे। चारों तरफ पहाड़ों से घिरे काबुल के फलों की उसने बड़ी तारीफ की है जिसमें अंगूर, अनार, खुमानी, सेब, नाशपाती, बेर, आलूबुखारा, अंजीर और अखरोट जैसे फलों का विवरण है। बाबर ने अपनी किताब में अफगानिस्तान की गर्म घाटी में पैदा होने वाले गन्ने, संतरे और गलगल के बारे में भी लिखा है। संस्मरण में हिन्दुस्तान की ओर से लाए जाने वाले पशुओं, गुलामों और वस्त्रों के अलावा तरह तरह के मसालों और शक्कर का भी जिक्र किया गया है।[2]
- अनुवादः बाबर ने अपनी जीवनी मातृभाषा चागताई (तुर्की भाषा का पुराना स्वरुप) में लिखी थी। बाद में बाबर के पोते अकबर ने तुजुक-ए-बाबरी का फारसी भाषा में अब्दुर्रहीम खान-ए-खानां द्वारा हिजरी 998 (1589-90 ई) में अनुवाद कराकर किताब को चित्रों से सजाया|[3] अकबर ने ईरान के दो मशहूर कलाकारों मीर सच्चीद अली और अब्द-अस-समद को हिंदुस्तान आने का निमंत्रण भेजा। इन दोनों कलाकारों ने स्थानीय चित्रकारों की मदद से बाबरनामा के अद्भुत चित्र बनवाए। 145 चित्रों वाला बाबरनामा 1598 ई में बना। बाबरनामा के चित्रों से मुगलकालीन कला की शुरुआती झलक मिलती है। कहा जाता है कि दौलत, भवानी, मंसूर, सूरदास, मिस्कीन, फारुख़ चोला और शंकर जैसे 47 कलाकारों की मदद से पांच सचित्र बाबरनामा तैयार किए गए। इनमें से एक प्रति नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में मौजूद है जबकि बाकी चार प्रति ब्रिटिश म्यूजियम लंदन, स्टेट म्यूजियम ऑफ ईस्टर्न कल्चर, मास्को और लंदन के ही विक्टोरियल और अल्बर्ट म्यूजियम में रखे हुए हैं। नई दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी गई बाबरनामा की सचित्र पोथी में कुल 378 पन्ने है और इनमें से 122 पन्नों पर 144 चित्र हैं।[4]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Uzbekistan: the golden road to Samarkand, Calum MacLeod, Bradley Mayhew, Odyssey, 2008, ISBN 978-962-217-795-6, ... The colourful literature of the Baburnama reveals his deep interest in people and art. He wrote fondly of the natural and architectural beauties of Ferghana, Samarkand and Kabul. In verses of Chagatai Turkish he ranks high after Alisher ...
- ↑ "इतिहास में खो गया बाबर का खूबसूरत अफगानिस्तान". मूल से 20 जून 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जून 2010.
- ↑ "रहीम की जीवनी". मूल से 17 जनवरी 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2006-10-28.
- ↑ "इतिहास के झरोखे से बाबर". मूल से 6 नवंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जून 2010.