सामग्री पर जाएँ

पौड़ी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
पौड़ी
Pauri
पौड़ी से पश्चिमी हिमालय में गंगोत्री समूह के बाएं आधे हिस्से का एक दृश्य , जिसका एक हिस्सा बाईं ओर दिखाई देता है।
पौड़ी से पश्चिमी हिमालय में गंगोत्री समूह के बाएं आधे हिस्से का एक दृश्य , जिसका एक हिस्सा बाईं ओर दिखाई देता है।
उपनाम: गढ़वाल
पौड़ी is located in उत्तराखंड
पौड़ी
पौड़ी
उत्तराखण्ड में स्थिति
निर्देशांक: 30°08′42″N 78°46′30″E / 30.145°N 78.775°E / 30.145; 78.775निर्देशांक: 30°08′42″N 78°46′30″E / 30.145°N 78.775°E / 30.145; 78.775
देश भारत
प्रान्तचित्र:..Uttarakhand Flag(INDIA).png उत्तराखंड
ज़िलापौड़ी गढ़वाल ज़िला
ऊँचाई1765 मी (5,791 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • कुल25,440
भाषा
 • प्रचलितहिन्दी गढ़वाली भाषा
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी 5:30)
पिनकोड246001
दूरभाष कोड 91-1368
वाहन पंजीकरणUK-12
वेबसाइटpauri.nic.in

पौड़ी (Pauri) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी गढ़वाल ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।[1][2][3]

पौड़ी से हिमालय का दृश्य

पौड़ी गढ़वाल जिला वृत्ताकार रूप में है, जिसमें हरिद्वार, देहरादून, टिहरी गढ़वाल, रूद्वप्रयाग, चमोली, अल्‍मोड़ा और नैनीताल सम्मिलित है। यहां स्थित हिमालय, नदियां, जंगल और ऊंचे-ऊंचे शिखर यहां की खूबसूरती को अधिक बढ़ाते हैं। पौड़ी समुद्र तल से लगभग 1814 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बर्फ से ढके हिमालय शिखर पौड़ी की खूबसूरती को कहीं अधिक बढ़ाते हैं।

पर्यटन स्थल

[संपादित करें]

कंडोलिया

[संपादित करें]
कंडोलिया मंदिर

शिव मंदिर (कंडोलिया देवता) पौड़ी से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कंडोलिया देवता का यह मंदिर वहां के भूमि देवता के रूप में पूजे जाते हैं। इस मंदिर के समीप ही खूबसूरत पार्क और खेल परिसर भी स्थित है। इससे कुछ मिनट की दूरी पर ही एशिया का सबसे ऊचा स्‍टेडियम रांसी भी है। गर्मियों के दौरान कंडोलिया पार्क में पर्यटकों की भारी मात्रा में भीड़ देखी जा सकती है। यहां आने वाले पर्यटक अपने परिवार के साथ यहां का पूरा-पूरा मजा उठाते हैं। इस पार्क के एक तरफ खुबसूरत पौड़ी शहर देखा जा सकता हैं वहीं दूसरी ओर गगवाड़स्यूं घाटी भी स्थित है। गगवाड़स्यूं घाटी में स्थित तमलाग गांव में मौरी मेले का आयोजन हर 12 साल के बाद होता हैं जो पांडव नृत्य से सम्बंधित हैं, कन्डोलिया मन्दिर से सर्दियों में हिमालय बहुत सुंदर दिखाई देता है। हिमालय की बन्दर पूछ, केदारनाथ, चौखम्बा, नीलकन्ठ, त्रिशूल आदि चोटियों के यहाँ से बहुत खूबसूरत दर्शन होते हैं।

बिंसर महादेव

[संपादित करें]

बिंसर महादेव मंदिर 2480 मी. ऊंचाई पर स्थित है। यह पौड़ी से 114 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह जगह अपनी प्राकृतिक सौन्‍दर्यता के लिए जानी जाती है। यह मंदिर भगवान हरगौरी, गणेश और महिषासुरमंदिनी के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस मंदिर को लेकर यह माना जाता है कि यह मंदिर महाराजा पृथ्‍वी ने अपने पिता बिन्‍दु की याद में बनवाया था। इस मंदिर को बिंदेश्‍वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

ताराकुंड

[संपादित करें]

ताराकुंड समुद्र तल से 2,200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ताराकुंड बहुत ही खूबसूरत एवं आकर्षित जगह है। जो पर्यटकों का ध्‍यान अपनी ओर अधिक खींचती है। ताराकुंड अधिक ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से आस-पास का नजारा काफी मनमोहक लगता है। एक छोटी सी झील और बहुत पुराना मंदिर इस जगह को ओर अधिक सुंदर बनाता है। साथ ही ऊंची पहाड़ियों के बीच बने मंदिर के साथ नौ बांस गहरा कुआं भी है, जो खुद में एक आश्चर्य है, बताया जाता है कि स्वर्गारोहण के वक्त पांडव यहां आए थे और उन्होंने ही ये मंदिर बनाया था। यहां तीज का त्‍यौहार, यहां रहने वाले स्‍थानीय निवासियों द्वारा बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। क्‍योंकि यह त्‍यौहार विशेष रूप से भूमि देवता को समर्पित होता है। ताराकुंड पहुंचने का एक रास्ता सिरतोली गांव से होकर भी जाता है,

कण्वाश्रम

[संपादित करें]

कण्वाश्रम मालिनी नदी के किनारे स्थित है। कोटद्वार से इस स्‍थान की दूरी 14 किलोमीटर है। यहां स्थित कण्व ऋषि आश्रम बहुत ही महत्‍वपूर्ण एवं ऐतिहासिक जगह है। ऐसा माना जाता है कि सागा विश्‍वमित्रा ने यहां पर तपस्‍या की थी। भगवानों के देवता इंद्र उनकी तपस्‍या देखकर अत्‍यंत चिंतित होगए और उन्‍होंने उनकी तपस्‍या भंग करने के लिए मेनका को भेजा। मेनका विश्‍वामित्र की तपस्‍या को भंग करने में सफल भी रही। इसके बाद मेनका ने कन्‍या के रूप में जन्‍म लिया और पुन: स्‍वर्ग आ गई। बाद में वहीं कन्‍या शकुन्‍तला के नाम से जाने जानी लगी। और उनका विवाह हस्तिनापुर के महाराजा से हो गया। शकुन्‍लता ने कुछ समय बाद एक पुत्र को जन्‍म दिया। जिसका नाम भारत रखा गया। भारत के राजा बनने के बाद ही हमारे देश का नाम भारत' रखा गया।


चरक डांड

आयुर्वेद के जनक महर्षि चरक की जन्मस्थली चरक डांडा , कोटद्वार से मात्र 25 किलोमीटर दूर खूबसूरत वादियों के बीच (चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं। वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे। इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है। इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है तथा सोना, चाँदी, लोहा, पारा आदि धातुओं के भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन मिलता है। आचार्य चरक ने आचार्य अग्निवेश के अग्निवेशतन्त्र में कुछ स्थान तथा अध्याय जोड्कर उसे नया रूप दिया जिसे आज चरक संहिता के नाम से जाना जाता है ) हुआ एक छोटा सा गांव इस गांव की ऊंचाई लैंसडौन के लगभग बराबर है 6600 फीट, दिल्ली से मात्र 230 किलोमीटर दूर बेहद खूबसूरत हसीन वादियों की भूमि जो एक बार यहां आए यहां का ही होकर रह जाए अपकमिंग टूरिस्ट प्लेस ऑफ पौड़ी गढ़वाल जिन पर्यटक को लीक से हटकर कुछ देखना है उनके लिए बेहद खूबसूरत जगह, ठहरने के लिए तीन 4 स्टार रिजॉर्ट उपलब्ध है

दूधातोली

[संपादित करें]

दूधातोली 31,00मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्‍थान जंगल से घिरा हुआ है। यहां तक पंहुचने के लिए थलीसैन से होते हुए पीठसैण पंहुच कर पंहुचा जा सकता है।

सड़क द्वारा पीठसैण से दूधातोली की दूरी 10 किलोमीटर है। दूधातोलीपौड़ी के खूबसूरत स्‍थानों में से एक है। यह स्‍थान हिमालय के चारों ओर से घिरा हुआ है। यहां का नजारा बहुत ही आकर्षक है जो यहां आने वाले पर्यटकों को सदैव ही अपनी ओर आ‍कर्षित करता है। गढ़वाल के स्‍वतंत्रता सेनानी वीर चन्‍द्र सिंह गढ़वाली को भी यह स्‍थान काफी पसंद आया था। इसलिए उनकी यह अंन्तिम इच्‍छा थी कि उनकी मृत्‍यु के बाद उनके नाम से एक स्‍मारक यहां पर बनाया जाए। यह स्‍मारक ओक के बड़े-बड़े वृक्षों के बीच स्थित है। जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में 'नेवर से डाई' लिखा गया है।

ज्वाल्‍पा देवी मंदिर

[संपादित करें]

यह क्षेत्र प्रसिद्ध शक्ति पीठ माता दुर्गा को समर्पित है। इस स्‍थान की दूरी पौड़ी कोटद्वार सड़क मार्ग 33 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्‍थान भी प्रमुख धार्मिक स्‍थानों में से एक है। हर साल भक्‍तगण भारी संख्‍या में माता के दर्शनों के लिए यहां आते हैं। पौड़ी कोटद्वार सड़क मार्ग से पौड़ी स्थित ज्वालपा देवी मंदिर की दूरी 34 किलोमीटर है। हर साल नवरात्रों के अवसर पर यहां ज्वालपा देवी विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। यहां पर एक संस्कृत विद्यालय भी है, जहां दूर-दूर से आने वाले विद्यार्थी शिक्षा-दीक्षा ग्रहण करते हैं

खिर्सू मंडल मुख्यालय पौड़ी से 19 किमी की दूरी पर स्थित है। खिर्सू से हिमालय की रेंज के दीदार होते हैं, यह एक पर्यटक ग्राम है। यहीं कारण है कि यह जगह भारी संख्‍या में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यहां से बहुत से जाने-अनजाने नाम वाले शिखरों का नजारा देखा जा सकता है। यह पौड़ी से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। खिर्सू काफी शन्तिपूर्ण स्‍थल है। इसके अलावा खिर्सू पूरी तरह से प्रदूषण रहित जगह है। यह जगह ओक, देवदार और सेब के बगीचों से घिरी हुई है। इन जंगलों में पैदल घूमना आपको न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद की अनुभूति कराता है बल्कि आपको सुकून भी देता है. यहां आकर आप चिड़ियों के चहचहाहट के बीच शाम को सूर्यास्त देखना नहीं भूलेंगे। [4]यहां सबसे पुराने गं‌ढीयाल देवता का मंदिर भी स्थित है।

हवाई मार्ग

सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जोलीग्रांट है। पौढ़ी से इस स्‍थान की दूरी 155 किलोमीटर है।

रेल मार्ग

सबसे नजदीकी रेलवे स्‍टेशन कोटद्वार है जो कि 108 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

सड़क मार्ग

पौढ़ी राष्ट्रीय राजमार्ग 309 द्वारा देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार एवं अन्‍य शहरों से जुड़ा हुआ है।

इन्हें भी देखें

[संपादित करें]

सन्दर्भ

[संपादित करें]
  1. "Start and end points of National Highways". मूल से 22 September 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 April 2009.
  2. "Uttarakhand: Land and People," Sharad Singh Negi, MD Publications, 1995
  3. "Development of Uttarakhand: Issues and Perspectives," GS Mehta, APH Publishing, 1999, ISBN 9788176480994
  4. "Khirsu Pauri Garhwal: उत्तराखंड के इस गांव से दिखाई देता है हिमालय का घर!" (अंग्रेज़ी में). 2022-11-22. मूल से 23 नवंबर 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2022-11-23.

[1] [2] [3]

  1. "अद्भुत: पेड़ उखाड़कर मनाते हैं पांडवों की जीत का जश्न". Amar Ujala. 2014.
  2. "पांडवों की याद में होता है मोरी मेला". Amar Ujala.
  3. "आस्था के सामने हर कोई नतमस्तक". Dainik jagran.