देवसंहिता
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देव संहिता प्राचीन काल में लिखा हुआ संस्कृत श्लोकों का एक संग्रह है जिसमे जाट जाति का जन्म, कर्म एवं जाटों की उत्पति का उल्लेख शिव और पार्वती के संवाद के रूप में किया गया है।
ठाकुर देशराज[1] लिखते हैं कि जाटों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक कथा कही जाती है। महादेवजी के श्वसुर राजा दक्ष ने यज्ञ रचा और अन्य प्रायः सभी देवताओं को तो यज्ञ में बुलाया पर न तो महादेवजी को ही बुलाया और न ही अपनी पुत्री सती को ही निमंत्रित किया। पिता का यज्ञ समझ कर सती बिना बुलाए ही पहुँच गयी, किंतु जब उसने वहां देखा कि न तो उनके पति का भाग ही निकाला गया है और न उसका ही सत्कार किया गया इसलिए उसने वहीं प्राणांत कर दिए. महादेवजी को जब यह समाचार मिला, तो उन्होंने दक्ष और उसके सलाहकारों को दंड देने के लिए अपनी जटा से 'वीरभद्र' नामक गण उत्पन्न किया। वीरभद्र ने अपने अन्य साथी गणों के साथ आकर दक्ष का सर काट लिया और उसके साथियों को भी पूरा दंड दिया. यह केवल किंवदंती ही नहीं बल्कि संस्कृत श्लोकों में इसकी पूरी रचना की गयी है जो देवसंहिता के नाम से जानी जाती है। इसमें लिखा है कि विष्णु ने आकर शिवाजी को प्रसन्न करके उनके वरदान से दक्ष को जीवित किया और दक्ष और शिवाजी में समझोता कराने के बाद शिवाजी से प्रार्थना की कि महाराज आप अपने मतानुयाई 'जाटों' का यज्ञोपवीत संस्कार क्यों नहीं करवा लेते? ताकि हमारे भक्त वैष्णव और आपके भक्तों में कोई झगड़ा न रहे. लेकिन शिवाजी ने विष्णु की इस प्रार्थना पर यह उत्तर दिया कि मेरे अनुयाई भी प्रधान हैं।
देवसंहिता के कुछ श्लोक निम्न प्रकार हैं-
- भगवन सर्व भूतेश सर्व धर्म विदाम्बरः
- कृपया कथ्यतां नाथ जाटानां जन्म कर्मजम्।। 12।।
अर्थ- हे भगवन! हे भूतेश! हे सर्व धर्म विशारदों में श्रेष्ठ! हे स्वामिन! आप कृपा करके मेरे तईं जाट जाति का जन्म एवं कर्म कथन कीजिये।। 12।।
- का च माता पिता ह्वेषां का जाति बद किकुलं।
- कस्तिन काले शुभे जाता प्रश्नानेतान बद प्रभो।। 13।।
अर्थ- हे शंकरजी ! इनकी माता कौन है, पिता कौन है, जाति कौन है, किस काल में इनका जन्म हुआ है ?।। 13।।
- श्रृणु देवि जगद्वन्दे सत्यं सत्यं वदामिते।
- जटानां जन्मकर्माणि यन्न पूर्व प्रकाशितं।। 14।।
अर्थ- महादेवजी पार्वती का अभिप्राय जानकर बोले कि जगन्माता भगवती ! जाट जाति का जन्म कर्म मैं तुम्हारी ताईं सत्य-सत्य कथन करता हूँ कि जो आज पर्यंत किसी ने न श्रवण किया है और न कथन किया है।। 14।।
- महाबला महावीर्या, महासत्य पराक्रमाः।
- सर्वाग्रे क्षत्रिया जट्टा देवकल्पा दृढ़-व्रता: || 15 ||
अर्थ- शिवजी बोले कि जाट महाबली हैं, महा वीर्यवान और बड़े पराक्रमी हैं क्षत्रिय प्रभृति क्षितिपालों के पूर्व काल में यह जाति ही पृथ्वी पर राजे-महाराजे रहीं। जाट जाति देव-जाति से श्रेष्ठ है और दृढ़-प्रतिज्ञा वाले हैं || 15 ||
- श्रृष्टेरादौ महामाये वीर भद्रस्य शक्तित:।
- कन्यानां दक्षस्य गर्भे जाता जट्टा महेश्वरी || 16 ||
अर्थ- शंकरजी बोले हे भगवती ! सृष्टि के आदि में वीरभद्रजी की योगमाया के प्रभाव से उत्पन्न जो पुरूष उनके द्वारा और ब्रह्मपुत्र दक्ष महाराज की कन्या गणी से जाट जाति उत्पन्न होती भई, सो आगे स्पष्ट होवेगा || 16 ||
- गर्व खर्चोत्र विग्राणां देवानां च महेश्वरी।
- विचित्रं विस्मयं सत्वं पौराण कै सांगीपितं || 17 ||
अर्थ- शंकरजी बोले हे देवि ! जाट जाति की उत्पत्ति का जो इतिहास है सो अत्यन्त आश्चर्यमय है। इस इतिहास में विप्र जाति एवं देव जाति का गर्व खर्च होता है। इस कारण इतिहास वर्णनकर्ता कविगणों ने जाट जाति के इतिहास को प्रकाश नहीं किया है || 17 ||
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ ठाकुर देशराज: जाट इतिहास, महाराजा सूरजमल स्मारक शिक्षा संस्थान, दिल्ली, 1934, पेज 87-88.