आक्सिम
ऐलडिहाइडों तथा कीटोनों पर हाइड्रॉक्सिल-ऐमिन की क्रिया से जो यौगिक प्राप्त होते हैं उन्हें आक्सिम (Oximes) कहते हैं। ऐलडिहाडो से बने यौगिकों को ऐलडॉक्सिम तथा कीटोनों से बने यौगिक कीटॉक्सिम कहलाते हैं। इनके सूत्र सामने के चित्र में दर्शाए गये हैं।
आक्सिम वे रासायनिक यौगिक हैं जिनका सामान्य सूत्र R1R2C=NOH है जिसमें R1 कोई कार्बनिक चेन है तथा R2 या तो हाइड्रोजन है जो एल्डाक्सिम बनाती है या कोई दूसरा कार्बनिक समूह है जो कीटॉक्सिम बनाता है।
इतिहास
[संपादित करें]सबसे पहला आक्सिम विक्टर मेयर ने सन् १८७८ ई. में बनाया था। इसके बाद ऐलडिहाइड तथा कीटोनों के शुद्धिकरण तथा उनकी पहचान में आक्सिमों के महत्त्व के कारण तथा इन यौगिकों की विन्यास-समावयवता के कारण, रसायनज्ञों ने इनके अध्ययन में विशेष रुचि दिखलाई, जिसके फलस्वरूप इनसे संबद्ध इनेक महत्वपूर्ण अनुसंधान हुए।
ऐलडिहाइडों तथा कीटोनों के शुद्धीकरण तथा पहचान में इनके उपयोग का विशेष कारण यह है कि आक्सिम ठोस अवस्था में मणिभीय तथा जल में अविलेय होते हैं; अत: इनको शुद्ध अवस्था में प्राप्त किया जा सकता है। हाइड्रोक्लोरिक या गंधकाम्ल के विलयन के साथ गरम करने से आक्सिमों का जलविश्लेषण हो जाता है। इसके फलस्वरूप ऐलडिहाइड या कीटोन स्वतंत्र अवस्था में पुन: प्राप्त हो जाते हैं।
आक्सिमों के अपचयन से प्राथमिक ऐमिन प्राप्त हाते हैं अत: -C-OCO-C-NH में परिवर्तित करने में इनका प्रयोग होता है। ऐलडाक्सिम ऐसिड क्लोराइड द्वारा निर्जलित किए जा सकते हैं जिससे कुछ आक्सिम, धात्वीय तत्वों के साथ संयुक्त होकर, स्थायी सवर्ग (कोऑरडिनेट) यौगिक बनाते हैं। लगभग एक समान गुणवाले और संबंधति विविध तत्वों से इस प्रकार बननेवाले यौगिकों की विलेयता एक दूसरे से भिन्न होती है। इस कारण, वैश्लेषिक रसायन में, इन आक्सिमों का बड़ा महत्त्व है। सैलिसिल ऐलडाक्सिम अनेक धातुओं से इस प्रकार के यौगिक बनाता है, परंतु तांबे के साथ बने यौगिक को छोड़कर अन्य धातुओं से बने सभी यौगिक तनु (डाइल्यूट) ऐसीटिक अम्ल में विलेय हैं। ताँबे के साथ बना यौगिक हरिताभ-पीत रंग का एक चूर्ण सा होता है और इसे ११०° सें. पर सुखाकर स्थायी रखा जा सकता है। अत: इफ्ऱेम ने इस आक्सिम का अन्य तत्वों से ताँबे के पृथक्करण तथा उसके परिमापन के लिए उपयोग करना अच्छा बतलाया है। इसी प्रकार डाईमेथिल ग्लाइक्सिम, जो डाइकीटोन-डाई-ऐसिटिल का डाइ-आक्सिम है, अनेक धातुओं के साथ संकीर्ण यौगिक बनाता है, जिनमें से केवल निकल तथा पलेडियम से बने यौगिक तनु अम्लों तथा तनु क्षार विलयनों में अविलेय होते हैं। अत: निकल तथा पलेडियम के परिमापन तथा निकल को कोबाल्ट से पूर्णत: पृथक् करने में इस आक्सिम का बहुत उपयोग होता है। बीटा नैप्थोक्वीनोन का एक आक्सिम कोबाल्ट के साथ इसी प्रकार का अविलेय यौगिक बनाता है, जिससे कोबाल्ट के परिमापन में इसका उपयोग होता है।
आक्सिमों की विन्यास-समावयवता
[संपादित करें]विन्यास रसायन के विकास में आक्सिमों का महत्त्व कुछ कम नहीं है। सन् १८८३ ई. में हान्स गोल्डस्मिट ने ज्ञात किया कि बेंजिल का द्वि-आक्सिम दो रूपों में पाया जाता है, फिर सन् १८८९ ई. में विक्टर मेयर ने एक तीसरा रूप भी ज्ञात किया। उसी वर्ष बेकमैन ने बताया कि बेंजैलडीहाइड का भी दो रूपों में पाया जाता है। वांट हॉफ ने >C = C< वाले यौगिकों की ज्यामितीय समावयवता पूर्ण रूप से सिद्ध कर दी थी; अत: आर्थर हाँस तथा ऐल्फ्रेड वर्नर ने इन सिद्धांतों को >C = N- वाले यौगिकों में लगाकर यह दिखलया कि आक्सिमों के समावयव ज्यामितीय समावयव हैं। उनके अनुसार ऐल्डीहाइडों तथा असममित कीटोनों के आक्सिम दो रूपों में पाए जाएँगे जिन्हें इस प्रकार लिख सकते हैं :
यह समावयवता ठीक उसी प्रकार की है जैसी मैलिक अम्ल तथा फ्यूमेरिक अम्ल की >C = C< पर। कीटोनों में यह केवल असममित कीटोनों में संभव है, क्योंकि R1 तथा R2 के एक हो जाने से फिर इन दो रूपों में कोई अंतर नहीं रह जाता। इसके आधार पर बेंजिल द्वि-आक्सिम के रूप भी लिखे जा सकते हैं।
कीटोनों के आक्सिमों की फासफोरस पेंटाक्साइड के साथ ईथर में प्रतिक्रिया करने से जो पदार्थ मिलता है उस पर जल की प्रतिक्रिया से प्रतिस्थापित ऐसिड-ऐमाइड प्राप्त होते हैं। इस क्रिया को बेकमान पुनर्विन्यास (Beckmann rearrangement) कहते हैं। इस क्रिया में मूलकों का परिवर्तन होता है। जो मूलक पहले कार्बन के साथ संयुक्त था, अब वह नाइट्रोजन के साथ संयुक्त मूलक से स्थानांतरण कर लेता है। इन पदार्थों का इस प्रकार बेकमैन रूपांतरण के फलस्वरूप बनना इस बात की पुष्टि करता है कि समावयवी आक्सिमों की रचना तो एक सी है, परंतु उसकी समावयवता मूलकों के तल में विभिन्न प्रकार से स्थित होने के कारण होती है।
इसके बाद इन बातों की पुष्टि करने के लिए हाँस, बर्नेर, डब्ल्यू.एच. मिल्स, माइसेनहाइमर, टी.डब्ल्यू.जे. टेलर तथा एल.एफ. सटन आदि रसायनज्ञों ने अनेक प्रयोगों के आधार पर समय-समय पर अपने विचार प्रकट किए हैं, किंतु आक्सिमों के संबंध में अभी तक बहुत सी बातें नहीं निश्चित हो पाई हैं।